अमेरिका की नई वीज़ा नीतियों से भारतीयों की मुश्किलें बढ़ीं, वर्कर वीज़ा से लेकर H-1B तक झटकानई दिल्ली 30
अमेरिका की नई वीज़ा नीतियों से भारतीयों की मुश्किलें बढ़ीं, वर्कर वीज़ा से लेकर H-1B तक झटका
नई दिल्ली 30 अक्टूबर (पीएमए) अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने पिछले कुछ महीनों में वीज़ा और आप्रवासन नियमों में कई बड़े बदलाव किए हैं, जिनका असर सबसे ज़्यादा भारतीय पेशेवरों, छात्रों और प्रवासी परिवारों पर पड़ा है. वर्कर वीज़ा पर रोक, इंटरव्यू अपॉइंटमेंट नियमों की सख़्ती, स्टूडेंट वीज़ा की समय सीमा, और अब वर्क परमिट के ऑटोमैटिक रिन्यूअल को खत्म करने जैसे फैसले ने भारतीय समुदाय में अनिश्चितता और चिंता बढ़ा दी है.
अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) के आँकड़ों के मुताबिक, भारत 2024 वित्त वर्ष में अमेरिका में गैर-प्रवासी आबादी भेजने वाला सबसे बड़ा देश रहा, जिसका हिस्सा कुल आबादी का 33 प्रतिशत था. वहीं अस्थायी कामगारों की श्रेणी में भारतीयों का हिस्सा 47 प्रतिशत तक पहुँच गया. इन आंकड़ों से साफ है कि अमेरिका की नई नीतियाँ भारतीय नागरिकों पर सीधे असर डाल रही हैं.
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में कई अहम निर्णय लिए हैं जिनमें सबसे पहले अगस्त में विदेशी ट्रक ड्राइवरों के लिए वर्कर वीज़ा जारी करने पर रोक लगा दी गई. यह फैसला उस समय लिया गया जब एक भारतीय मूल के ड्राइवर से जुड़ी सड़क दुर्घटना ने अमेरिका में राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर दिया था. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह कदम “अमेरिकी ट्रक चालकों की नौकरियाँ और सुरक्षा बचाने के लिए” ज़रूरी है. अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने घोषणा करते हुए कहा, “विदेशी ड्राइवरों की बढ़ती संख्या अमेरिकी सड़कों की सुरक्षा और देश के श्रम बाज़ार के लिए खतरा बन रही है.”
यह फैसला ऐसे समय आया है जब अमेरिकी ट्रकिंग उद्योग लंबे समय से ड्राइवरों की भारी कमी झेल रहा है और भारतीय मूल के हजारों ट्रक ड्राइवर — विशेष रूप से सिख समुदाय के लोग — इस कमी को पूरा करने में अहम भूमिका निभा रहे थे. अब वर्कर वीज़ा रोकने से उन लोगों पर सीधा असर पड़ेगा जिन्होंने पहले ही रोजगार या निवेश की प्रक्रिया शुरू कर रखी थी.
इसके बाद प्रशासन ने छात्र वीज़ा नीति में बदलाव का प्रस्ताव रखा. अगस्त के अंत में घोषित नई नीति के अनुसार, अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए F वीज़ा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत आने वाले J वीज़ा की अवधि अधिकतम चार साल तक सीमित कर दी गई है. पहले ये वीज़ा छात्रों के कोर्स की अवधि तक वैध रहते थे, लेकिन अब तय समय सीमा के बाद उन्हें विस्तार (extension) के लिए आवेदन करना होगा. इस कदम से विदेशी छात्रों के लिए अमेरिका में शिक्षा और शोध के अवसर और भी कठिन हो जाएंगे. रिपोर्टों के मुताबिक, भारत से अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या इस साल पहले ही आधी रह गई है और यह फैसला इस गिरावट को और बढ़ा सकता है.
सितंबर में एक और बदलाव आया, जब अमेरिकी विदेश विभाग ने नॉन-इमिग्रेंट वीज़ा (NIV) आवेदकों के लिए इंटरव्यू अपॉइंटमेंट से जुड़े नियमों को सख़्त कर दिया. अब किसी भी वीज़ा इंटरव्यू की अपॉइंटमेंट उसी देश में करनी होगी जहाँ आवेदक रहते हैं. पहले भारतीय नागरिक लंबी प्रतीक्षा अवधि से बचने के लिए सिंगापुर, दुबई या श्रीलंका जैसे देशों में अपॉइंटमेंट बुक कर लेते थे, लेकिन अब यह संभव नहीं होगा. नए नियमों के तहत यदि कोई व्यक्ति दूसरे देश में इंटरव्यू देने जाता है, तो उसके वीज़ा स्वीकृत होने की संभावना कम हो जाएगी और वीज़ा शुल्क भी वापस नहीं मिलेगा. इसका मतलब यह है कि अब भारतीय आवेदकों को भारत में ही महीनों तक अपॉइंटमेंट स्लॉट के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा.
इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा को लेकर भी बड़ा झटका दिया. 19 सितंबर को राष्ट्रपति ट्रंप ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत H-1B वीज़ा की फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दी गई. यह नियम 21 सितंबर से लागू हो गया. हालांकि व्हाइट हाउस ने सफाई दी कि यह एक बार की फीस है, न कि हर साल लगने वाला शुल्क, लेकिन इससे कंपनियों और पेशेवरों में खलबली मच गई. H-1B वीज़ा आम तौर पर तीन साल के लिए जारी किया जाता है, जिसे छह साल तक बढ़ाया जा सकता है. इस वीज़ा के तहत अमेरिकी कंपनियाँ विदेशी पेशेवरों — विशेषकर आईटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल और साइंस जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञों — को काम पर रखती हैं.
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि कंपनियाँ “सिर्फ़ उन्हीं विदेशी पेशेवरों को बुलाएँ जिन्हें अमेरिकी श्रम बाज़ार में बदला नहीं जा सकता.” भारत के लिए यह फैसला इसलिए बड़ा झटका है क्योंकि हर साल अमेरिका में जारी होने वाले 85,000 H-1B वीज़ा में से करीब 70 प्रतिशत भारतीयों को मिलते हैं. लगभग तीन लाख भारतीय पेशेवर वर्तमान में H-1B वीज़ा पर अमेरिका में कार्यरत हैं. ‘द अदर वन परसेंट’ नामक अध्ययन के अनुसार, यही कार्यक्रम भारतीय-अमेरिकियों को अमेरिका के सबसे अधिक शिक्षित और समृद्ध समुदायों में बदलने में प्रमुख कारण रहा है.
H-1B वीज़ा भारतीय आईटी कंपनियों जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो के लिए भी अहम रहा है, क्योंकि यह उन्हें अपने तकनीकी कर्मियों को अमेरिका भेजने का अवसर देता था ताकि वे सीधे ग्राहकों के साथ काम कर सकें. अब भारी फीस वृद्धि और प्रशासनिक सख़्ती से इन कंपनियों के परिचालन लागत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी.
सबसे ताज़ा और व्यापक असर डालने वाला निर्णय बुधवार, 29 अक्टूबर को आया, जब अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) ने वर्क परमिट (EAD) के नवीनीकरण से जुड़े नियमों में बदलाव की घोषणा की. अब विदेशी पेशेवरों का कार्य प्राधिकरण (वर्क ऑथराइजेशन) तभी तक मान्य रहेगा जब तक उनका वीज़ा रिन्यूअल मंज़ूर न हो जाए. पहले व्यवस्था यह थी कि यदि किसी का वर्क परमिट खत्म भी हो जाए, तो वे नए वीज़ा के लिए आवेदन करते हुए काम जारी रख सकते थे.
नए नियमों के तहत यदि वीज़ा नवीनीकरण समय पर स्वीकृत नहीं हुआ, तो व्यक्ति को तुरंत अपना काम छोड़ना होगा. इसका सबसे बड़ा असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा — ख़ासकर उन पर जो H-1B वीज़ा धारकों के जीवनसाथी (H-4 वीज़ा) के रूप में अमेरिका में काम कर रहे हैं या छात्र वीज़ा (F-1) के तहत OPT प्रोग्राम पर कार्यरत हैं. जिन लोगों की आय इस वर्क परमिट पर निर्भर है, उन्हें अब नौकरी खोने और आय रुकने का जोखिम झेलना होगा.
अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवाओं (USCIS) के निदेशक जोसेफ एडलो ने इस कदम को “कॉमनसेंस मेज़र” बताया, जबकि आप्रवासन विशेषज्ञों ने इसे “नीति के नाम पर मानवीय संकट” कहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि वीज़ा नवीनीकरण की प्रक्रिया पहले से ही महीनों लेती है, और अब इस बीच काम रोकना भारतीय परिवारों के लिए आर्थिक और मानसिक तनाव का कारण बनेगा.
इन सभी नीतिगत परिवर्तनों का असर सिर्फ़ कामगारों पर नहीं, बल्कि भारतीय छात्रों, शोधकर्ताओं और परिवारों पर भी पड़ रहा है. कई दंपत्ति जिनका भविष्य H-1B और H-4 पर निर्भर था, अब अपनी नौकरी, मकान और वीज़ा स्थिति को लेकर असमंजस में हैं.
भारत सरकार ने फिलहाल इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन प्रवासी भारतीय संगठनों और टेक इंडस्ट्री समूहों ने अमेरिका से अपील की है कि वह इन नीतियों पर पुनर्विचार करे. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव केवल आप्रवासन नियंत्रण की नीति नहीं, बल्कि अमेरिकी चुनावी राजनीति से भी जुड़ा कदम है, जिसका असर आने वाले वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों पर भी देखा जा सकता है.
अमेरिकी वीज़ा प्रणाली में हो रहे इन बदलावों ने उस सपने को और कठिन बना दिया है जिसे लाखों भारतीय युवा “अमेरिकन ड्रीम” कहते हैं. नई नीतियों के बाद अब यह सपना महंगा भी है और अनिश्चित भी — जहाँ मेहनत और योग्यता के बावजूद मंज़िल तक पहुँचना पहले से कहीं ज़्यादा मुश्किल हो गया है।
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