परिवहन विभाग के 3-डिजिट घोटाले पर डिप्टी सीएम का कड़ा रुख: शामिल अधिकारियों पर FIR, 600 करोड़ के नुकसान की वसूली का ऐलान

 परिवहन विभाग के 3-डिजिट घोटाले पर डिप्टी सीएम का कड़ा रुख: शामिल अधिकारियों पर FIR, 600 करोड़ के नुकसान की वसूली का ऐलान

**जयपुर, 23 नवंबर 2025 (स्पेशल रिपोर्ट)**: राजस्थान के परिवहन विभाग में चले आ रहे बहुचर्चित '3-डिजिट घोटाले' पर डिप्टी मुख्यमंत्री डॉ. प्रेम चंद बैरवा ने बड़ा फैसला ले लिया है। घोटाले में शामिल सभी कार्मिकों और अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश जारी किए गए हैं। साथ ही, विभाग को हुए 600 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान की वसूली के लिए विशेष अभियान चलाने का ऐलान किया गया है। यह फैसला जांच रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें राज्यभर के आरटीओ कार्यालयों में भारी अनियमितताएं सामने आई हैं।

डॉ. बैरवा, जो खुद परिवहन मंत्री के पद पर हैं, ने कहा, "यह घोटाला विभाग की विश्वसनीयता पर कलंक है। दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। हम न केवल कानूनी कार्रवाई करेंगे, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ई-नीलामी प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाएंगे।" यह बयान जयपुर में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद दिया गया, जिसमें विभागीय सचिव और वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

 घोटाले का खुलासा: कैसे लूटा गया सरकारी खजाना?
परिवहन विभाग में '3-डिजिट' वीआईपी वाहन नंबरों (जैसे 0001, 007 आदि) के आवंटन में 2018 से 2023 तक चले फर्जीवाड़े ने सरकार के राजस्व को चपेट में ले लिया। जांच समिति की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 10 हजार वीआईपी नंबरों का आवंटन रिकॉर्ड में हेरफेर कर किया गया। नीलामी से प्राप्त होने वाली राशि सीधे सरकारी खाते में जानी चाहिए थी, लेकिन बिचौलियों और आरटीओ कर्मचारियों की मिलीभगत से यह रकम निजी खातों में चली गई। 

रिपोर्ट में जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर, अलवर और उदयपुर जैसे जिलों में सबसे अधिक अनियमितताएं पाई गईं। कई मामलों में एक ही नंबर कई लोगों को जारी कर दिया गया, जबकि नीलामी की रसीदें ही गायब कर दी गईं। ई-डेटा वेरिफिकेशन (ईडीवी) सिस्टम लागू होने के बावजूद पुरानी फाइलों में छेड़छाड़ की गई और कई आरटीओ ने रिपोर्ट ही जमा नहीं की। कुल मिलाकर, विभाग को 600 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जो नीलामी से अपेक्षित आय का बड़ा हिस्सा है। 

जांच में 450 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता सामने आई है। बिचौलियों ने सांसदों, विधायकों और अन्य प्रभावशाली लोगों को फर्जी तरीके से नंबर उपलब्ध कराए, जिसके बदले ऊंची रकम वसूली गई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी मामले का संज्ञान लिया है और विभाग से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। 

 डिप्टी सीएम का 'बड़ा फैसला': FIR से लेकर ऑडिट तक
डॉ. बैरवा के फैसले के तहत:
- **एफआईआर और निलंबन**: घोटाले में शामिल सभी कार्मिकों पर तत्काल एफआईआर दर्ज होगी। दोषी पाए जाने पर निलंबन और विभागीय जांच सुनिश्चित।
- **ऑडिट अभियान**: पिछले सात वर्षों में जारी सभी वीआईपी नंबरों का विशेष ऑडिट कराया जाएगा।
- **वसूली प्रक्रिया**: 600 करोड़ की राशि वसूलने के लिए रिकवरी टीम गठित, जिसमें ईडी की मदद ली जाएगी।
- **सुधार के कदम**: ई-नीलामी को तकनीकी रूप से मजबूत बनाना, ऑनलाइन सत्यापन अनिवार्य और आरटीओ कार्यालयों में डिजिटल निगरानी बढ़ाना।

यह फैसला 4 नवंबर को सौंपी गई जांच रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे विभाग ने ईडी को भी भेज दिया था। विपक्ष ने इसे देरी से उठाए गए कदम का नाम देते हुए कहा कि भजनलाल सरकार में भ्रष्टाचार पर 'नरमी' बरती जा रही है। हालांकि, भाजपा नेताओं ने इसे 'शून्य सहनशीलता' की मिसाल बताया।

 प्रभाव: क्या बदलेगा परिवहन विभाग का चेहरा?
यह घोटाला न केवल आर्थिक नुकसान का प्रतीक है, बल्कि आम नागरिकों के लिए वाहन पंजीकरण प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल सुधारों से भविष्य में पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन वसूली में कितना सफलता मिलेगी, यह आने वाले दिनों में साफ होगा। विभाग ने स्पष्ट किया है कि कोई भी प्रभावशाली व्यक्ति इस जांच के दायरे से बाहर नहीं रहेगा।

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