मकर संक्रांति के बाद वाले दिन यानी पहला माघ को यहां लगता है. वह है मछली का मेला.
रिपोर्टर :- बिनय प्रकाश दास
हुगली : पश्चिम बंगाल
ठंड के मौसम में नाना तरह के मेला का आयोजन होता है. इन मेलाओं में कपड़े, खिलौने, बर्तन, जूते, स्वेटर, चादर सहित नाना तरह के सामान बिक्री होते हैं, लेकिन इन सबसे अलग एक मेला हुगली जिले के देवानन्दपुर ग्राम पंचायत के कृष्णपुर बाजार में लगती है. साल में केवल एक ही दिन के लिए इस मेला का आयोजन होता है. मकर संक्रांति के बाद वाले दिन यानी पहला माघ को यहां लगता है. वह है मछली का मेला.
मेला में आज विधायक असित मजूमदार और हुगली जिला परिषद के मत्स्य और प्राणी संपद विभाग के कर्माध्यक्ष निर्माल्य चक्रवर्ती, उपप्रधान पीयूष धर, अंचल सभापति जयंत दास भी उपस्थित हुए. यह मेला, मेला ही नहीं वैष्णव संप्रदाय के लोगों का मिलन क्षेत्र है, पर सुन कर बड़ा ही आश्चर्य होगा कि वैष्णव संप्रदाय के लोगों के मिलन क्षेत्र में मछली का मेला. इसके पीछे एक बड़ा इतिहास है. इस इतिहास को जानने के लिए 517 साल पीछे आपको जाना पड़ेगा.
मंदिर के पुरोहित मनोज चक्रवर्ती ने बताया कि तत्कालीन सप्तग्राम और मौजूदा आदि सप्तग्राम इलाके में जमीदार परिवार का संतान रघुनाथ दास गोस्वामी महाप्रभु कृष्ण के अंधभक्त थे. उन्होंने अपने रियासत क्षेत्र में एक कृष्ण मूर्ति की स्थापना की. कृष्ण की सेवा में उनका नाम अंग बंग कलिंग सहित पूरे भारतवर्ष में फैल गया. उनके हजारों अनुयायी बन गए, लेकिन कुछ लोग उनकी धर्म की परीक्षा में जुट गए. कृष्णापुर पहुंच गए और हिल्सा मछली और भात दाल और सब्जी के अलावा आम की चटनी की मांग की. रघुनाथ दास यह बात समझ गए कि उनके साथ परीक्षा किया जा रहा है. उन्होंने तालाब से हिल्सा मछली और ठंड के मौसम में अपने बगीचे से आम जुगाड़ कर मंदिर संलग्न मैदान में उन्होंने अतिथियों को खिलाने की व्यवस्था की. उस दिन पहला माघ था. तभी से यहां के लोग पहला माघ को अवश्य मछली खाते हैं और मछलियों का मेला का आयोजन होता हैं. इस मेले में मोरला, भेटकी, रूप चांदा, भोला, हिलसा, मांगुर, केवई, कालबोस, शंकर, तोपसे, कांचकी, पावदा, गरई, सोल, बोआल, काजरी, आईला, बान आदि तरह के मछलियां मिलती है. इसे लोग खरीद कर अपने घर ले जा सकते हैं और वहीं पर इसे तला कर खाते हैं. इस दिन यहां पिकनिक मनाने वालों के भी भीड़ उमड़ती है और वे लोग इस मेला प्रांगण से मछलियां खरीद कर आनंद उठाते हैं. बंडेल और आदि सप्तग्राम स्टेशन से लोग ऑटो और टोटो के जरिए कृष्णपुर बाजार पहुंचते है. हजारों हजारों लोगों की भीड़ इस मेला को अलग बनाता है.
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